अमेरिका में अचानक ऐसा क्‍या हुआ जिससे भारत में दौड़ी खुशी की लहर, किसे हो रहा दर्द?

नई दिल्‍ली: अमेरिका में थैंक्सगिविंग की छुट्टी से पहले पेट्रोल के भंडार में अप्रत्याशित बढ़ोतरी देखी गई। इससे दुनिया के सबसे बड़े तेल उपभोक्ता देश में मांग को लेकर चिंता बढ़ गई। इसके चलते गुरुवार को तेल की कीमतों में गिरावट दर्ज की गई। ब्रेंट क्

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नई दिल्‍ली: अमेरिका में थैंक्सगिविंग की छुट्टी से पहले पेट्रोल के भंडार में अप्रत्याशित बढ़ोतरी देखी गई। इससे दुनिया के सबसे बड़े तेल उपभोक्ता देश में मांग को लेकर चिंता बढ़ गई। इसके चलते गुरुवार को तेल की कीमतों में गिरावट दर्ज की गई। ब्रेंट क्रूड फ्यूचर्स 0.1% यानी 4 सेंट घटकर 72.79 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया। डब्‍ल्‍यूटीआई क्रूड फ्यूचर्स भी 1 सेंट टूटकर 68.71 डॉलर प्रति बैरल पर बोला गया। अमेरिकी छुट्टी के कारण व्यापार कम रहने की उम्मीद है। इस गिरावट की वजह अमेरिका और चीन जैसे बड़े तेल उपभोक्ताओं में ईंधन की मांग में कमी और OPEC+ की ओर से उत्पादन में संभावित कटौती पर विचार-विमर्श है।
कच्‍चे तेल की कीमतों में नरमी भारत के लिए अच्‍छी खबर है। भारत बड़ा तेल आयातक देश है। कच्चे तेल की कीमतें कम होने से तेल का आयात बिल कम हो जाता है। इससे व्यापार घाटा कम करने में मदद मिलती है। तेल बिल कम होने से विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी होती है। यह देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में मदद करता है। जब ईंधन की कीमतें कम होती हैं तो लोग अधिक खर्च करते हैं। इससे खपत बढ़ती है और अर्थव्यवस्था को रफ्तार मिलती है।

तेल उत्‍पादक देशों को नुकसान

इसके उलट तेल उत्पादक देशों की प्रमुख आय का स्रोत कच्चे तेल का निर्यात होता है। कीमतों में गिरावट से इन देशों की आय में कमी आती है। कम आय के कारण इन देशों का बजट घाटा बढ़ने का जोखिम रहता है।

अमेरिका में थैंक्सगिविंग की छुट्टी से पहले पेट्रोल के भंडार में हुई बढ़ोतरी ने बाजार को चौंका दिया। यूएस एनर्जी इनफॉर्मेशन एडमिनिस्‍ट्रेशन (EIA) के अनुसार, 22 नवंबर को समाप्त सप्ताह में तेल भंडार 33 लाख बैरल बढ़ गया। इसके उलट विशेषज्ञों का अनुमान था कि ईंधन के भंडार में मामूली गिरावट आएगी।

रायटर्स के सर्वे में विश्लेषकों ने अनुमान लगाया था कि तेल भंडार 46,000 बैरल घटेगा। लेकिन, EIA की रिपोर्ट ने सबको हैरान कर दिया। इस बढ़ोतरी ने अमेरिका में तेल की मांग को लेकर चिंता बढ़ा दी है।

क्‍यों पड़ा है कीमतों पर दबाव?

इस साल अमेरिका और चीन जैसे बड़े तेल उपभोक्ताओं में ईंधन की मांग में कमी देखी गई है। इसका असर तेल की कीमतों पर पड़ा है। हालांकि, OPEC+ की ओर से उत्पादन में कटौती से कीमतों में ज्यादा गिरावट नहीं आई है। OPEC+ में OPEC, रूस और अन्य सहयोगी देश शामिल हैं।

न्‍यूज एजेंसी रायटर्स ने दो सूत्रों के हवाले से बताया कि OPEC+ के सदस्य जनवरी में प्रस्तावित तेल उत्पादन बढ़ोतरी को और टालने पर विचार कर रहे हैं। समूह रविवार को 2025 के शुरुआती महीनों के लिए नीति तय करने के लिए बैठक करेगा। इससे पहले OPEC+ ने कहा था कि वह 2024 और 2025 में कई महीनों में धीरे-धीरे तेल उत्पादन में कटौती को कम करेगा।

इस हफ्ते इजरायल और लेबनान के हिजबुल्लाह समूह के बीच युद्धविराम समझौते से तेल की कीमतों पर दबाव पड़ा। युद्धविराम बुधवार से शुरू हो गया। इससे इस चिंता में कमी आई कि संघर्ष से मध्य पूर्व क्षेत्र से तेल सप्‍लाई बाधित हो सकती है। ANZ बैंक के विश्लेषकों ने कहा कि बाजार के सहभागी इस बारे में अनिश्चित हैं कि लड़ाई में यह विराम कब तक रहेगा। कारण है कि तेल के लिए व्यापक भू-राजनीतिक पृष्ठभूमि अस्पष्ट बनी हुई है।

गोल्‍डमैन सैक्‍स और मॉर्गन स्‍टैनली के कमोडिटी रिसर्च प्रमुखों ने हाल के दिनों में चेतावनी दी थी कि बाजार में कमी के कारण तेल की कीमतें कम आंकी गई हैं। उन्होंने अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के तहत लागू किए जा सकने वाले प्रतिबंधों से ईरानी सप्‍लाई के लिए संभावित जोखिम की ओर भी इशारा किया था। ये सभी फैक्‍टर मिलकर तेल बाजार में उतार-चढ़ाव का कारण बन रहे हैं।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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